रामगुप्त समुद्रगुप्त के बड़े पुत्र और तत्कालीन उत्तराधिकारी थे। पहले वे केवल पारंपरिक कथाओं से ही जाने जाते थे, लेकिन बाद में विदिशा के पास दुर्जनपुर से जैन तीर्थंकर की छवियों पर तीन अभिलेख मिले, जिनमें उन्हें महाराजाधिराज के रूप में उल्लेखित किया गया है।
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