खाद्य तेल, खासकर सरसों और तिल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए 1986-1987 में यह क्रांति शुरू की गई थी ताकि तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। इस पहल के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले, जिन्हें "येलो रिवॉल्यूशन" कहा गया। 1986 से 1994 के बीच तिलहन के क्षेत्रफल, उत्पादन और उपज की वृद्धि दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई।
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