राजपूतों की उत्पत्ति
प्रारंभिक मध्यकाल में भूमि पर अधिकार रखने वाले शक्तिशाली प्रमुखों का एक वर्ग उभरा, जिसे राजपूत कहा गया। कई राजपूतों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए। इस वर्ग के विकास की प्रक्रिया को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं, लेकिन इसकी उत्पत्ति को लेकर कुछ लोकप्रिय कथाएँ प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक अग्निकुल कथा है, जिसका उल्लेख 11वीं शताब्दी में मिलता है। इस कथा के अनुसार, ऋषि वशिष्ठ ने यज्ञ की अग्नि से चार राजपूत वंशों- प्रतिहार, सोलंकी/चालुक्य, परमार/पंवार और चाहमान/चौहान को उत्पन्न किया। इस काल में ब्राह्मणों ने विभिन्न शासक वंशों की वंशावलियाँ लिखीं, जिनमें उन्हें प्राचीन क्षत्रिय वंशों से जोड़ा गया। उदाहरण के लिए, गुर्जर-प्रतिहारों को लक्ष्मण से जोड़ा गया, जो राम के द्वारपाल (प्रतिहार) थे।
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