भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने कहा था, "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।" उन्होंने "स्वराज्य" शब्द गढ़ा। यह कथन उस समय दिया गया जब कई लोग मानते थे कि भारतीयों का शासन किसी और के हाथ में होना बेहतर है।
तिलक ब्रिटिश शासन और उन उदार राष्ट्रवादियों के आलोचक थे जो पश्चिमी तरीकों से सामाजिक सुधारों का समर्थन करते थे। अपने लेखन के कारण उन्हें छह साल की सजा हुई। महाराष्ट्र के लोगों ने उन्हें "लोकमान्य" की उपाधि दी, जिसका अर्थ है "जनता द्वारा स्वीकार्य"।
तिलक ने "स्वराज्य" को राजनीतिक और नैतिक दोनों दृष्टि से परिभाषित किया। उनके अनुसार, इसका अर्थ आत्मशासन, आत्मसंयम और आंतरिक स्वतंत्रता था।
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