गुरु अंगद देव जी (1504-1552 ई.) सिखों के दूसरे गुरु थे। उन्होंने पुरानी पंजाबी लिपि में सुधार कर सरल गुरुमुखी लिपि को प्रचलित किया। यह लिपि पंजाबी भाषा के लेखन का माध्यम बनी, जिसमें गुरुओं के भजन संकलित हैं।
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