श्रीलंका में बौद्ध साधना और थेरवाद अभिधम्म पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे बुद्धघोष ने 5वीं शताब्दी में लिखा था। यह बौद्ध मार्ग की 5वीं शताब्दी की समझ और व्याख्या का क्रमबद्ध और व्यवस्थित प्रस्तुतीकरण है, जिसे अनुराधापुर, श्रीलंका के महाविहार मठ के आचार्यों ने संकलित किया था। इसे त्रिपिटक मत के बाहर का सबसे महत्वपूर्ण थेरवाद ग्रंथ माना जाता है और इसे "त्रिपिटक की संपूर्ण और संगठित व्याख्या का केंद्र" कहा गया है।
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