बिपिन चंद्र पाल ने "The Soul of India" लिखी, जो 1911 में प्रकाशित हुई थी। वे 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता थे। यह पुस्तक एक युवा अंग्रेज मित्र को लिखे चार पत्रों के रूप में है। इसमें पाल का यह विश्वास झलकता है कि लेखन लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित कर सकता है।
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