डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत लॉर्ड डलहौजी ने 1849 में संबलपुर का अधिग्रहण कर लिया क्योंकि नारायण सिंह का कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था। 1857 के विद्रोह के दौरान सिपाहियों ने सुरेंद्र साय और उनके भाई उद्यंत साय को मुक्त कर दिया। इसके बाद भी संबलपुर में ब्रिटिश विरोधी संघर्ष सुरेंद्र साय के नेतृत्व में जारी रहा।
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