सरकार के स्वामित्व वाली बंजर या बेकार भूमि जो खेती या उत्पादक उपयोग के लिए आवंटित की जाती है
केंद्रीय गृह मंत्रालय लद्दाख में नाटोर भूमि को नियमित करने का प्रस्ताव विचाराधीन है, जिससे स्थानीय लोगों को वर्षों से उपयोग में लाई जा रही सरकारी बेकार भूमि का स्वामित्व मिल सके। नाटोर भूमि उस बंजर सरकारी भूमि को कहते हैं, जिसे खेती या उत्पादक उपयोग के लिए आधिकारिक मंजूरी के साथ आवंटित किया जाता है। इसका आरंभ 1932 में जम्मू और कश्मीर में हरि सिंह के शासनकाल में हुआ और बाद में 1968 में हिमाचल प्रदेश में अपनाया गया, जिसे बाद में रोक दिया गया। यह नीति लेह, कारगिल और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों जैसे पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों को लक्षित करती है। नियमितीकरण से स्थानीय लोगों को स्वामित्व सुनिश्चित होता है, बाहरी लोगों से संसाधनों की सुरक्षा होती है और सांस्कृतिक व आर्थिक परंपराओं का संरक्षण होता है।
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