1922 में चौरी-चौरा उस समय चर्चा में आया जब वहां के लोगों ने गांधीजी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। लेकिन फरवरी 1922 में गुस्साई भीड़ ने एक पुलिस चौकी में आग लगा दी, जिससे 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद 12 फरवरी 1922 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को समाप्त करने का फैसला किया।
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