शारदा ब्राह्मी परिवार की एक लिपि है, जो 8वीं शताब्दी के आसपास विकसित हुई। यह संस्कृत और कश्मीरी लिखने के लिए प्रयुक्त होती थी। गुरु अंगद ने शारदा से गुरुमुखी लिपि विकसित की। पहले इसका व्यापक उपयोग था, लेकिन बाद में यह केवल कश्मीर तक सीमित रह गई और अब इसे मुख्य रूप से कश्मीरी पंडित समुदाय धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करता है। शारदा लिपि की कई शाखाएँ हैं, जैसे टक्करी या टंकारी, जो डोगरी लिपि की जननी है, कुलुई लिपि (हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में), चमेली लिपि (हिमाचल प्रदेश के चंबा में), सिंधी, पंजाब की बनिया लिपि आदि।
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