राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी से चंपारण के नील किसानों की समस्या में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। किसानों को अपनी भूमि के 3/20वें हिस्से पर जबरन नील की खेती करनी पड़ती थी, जिसे तिनकठिया प्रथा कहा जाता था। गांधीजी के आंदोलन के कारण यह प्रथा समाप्त हुई और किसानों से अवैध रूप से वसूली गई राशि का 25% उन्हें वापस दिलाया गया।
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