यह संभवतः सबसे पुरानी रंगमंच परंपरा है, जो आज भी प्रचलित है। यह कर्नाटक और केरल के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। इसकी उत्पत्ति विजयनगर साम्राज्य के शाही दरबार और जक्कुलु वरु नामक एक विशेष समाज में हुई थी। यह मुख्य रूप से एक विस्तृत नृत्य नाटक होता है, जिसे एक ही कलाकार प्रस्तुत करता है। बाद के रूपों में अधिक विविधता आई और यह एक विशिष्ट नृत्य नाटक के रूप में विकसित हुआ। इस पर वैष्णव भक्ति आंदोलन का गहरा प्रभाव पड़ा।
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