ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को त्रयीविद्या ("त्रिविध ज्ञान") कहा जाता था। मंत्रों, जादू टोने और अनुष्ठानों का चौथा संग्रह अथर्ववेद ("अथर्वण पुरोहित का ज्ञान") कहलाता है, जो विभिन्न स्थानीय परंपराओं को शामिल करता है और वेदिक यज्ञ से आंशिक रूप से बाहर रहता है।
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