ब्रिटिश इंडोलॉजिस्ट विन्सेंट आर्थर स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में अकबर के दीन-ए-इलाही की आलोचना करते हुए इसे मूर्खता और "निरर्थक आविष्कार" कहा। उनके विचार औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाते हैं, जो अक्सर गैर-यूरोपीय उपलब्धियों को नजरअंदाज करती थी। हालांकि यह संप्रदाय अधिक समय तक नहीं चला, लेकिन इसका उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना था। इसमें विभिन्न धर्मों के तत्व शामिल थे, जो अकबर की नवाचारपूर्ण शासन शैली को दर्शाते हैं।
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