'द आर्कटिक होम इन द वेदाज' लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा आर्यों की उत्पत्ति पर लिखी गई पुस्तक है। यह पुस्तक 1898 के अंत में लिखी गई थी और पहली बार मार्च 1903 में पुणे में प्रकाशित हुई। इसमें यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया कि हिमयुग से पहले उत्तर ध्रुव आर्यों का मूल निवास स्थान था, जिसे उन्हें लगभग 8000 ईसा पूर्व बर्फ की बाढ़ के कारण छोड़ना पड़ा। नए निवास स्थानों की खोज में उन्हें यूरोप और एशिया के उत्तरी भागों में जाना पड़ा। इस सिद्धांत के समर्थन में तिलक ने कुछ वैदिक मंत्र, पूर्व ईरानी उद्धरण, वैदिक कालक्रम और वैदिक कैलेंडर के विवरण प्रस्तुत किए हैं।
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