प्रथम विश्व युद्ध के बाद लोकतांत्रिक सुधारों का वादा कर भारत ने ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में बड़ी भूमिका निभाई थी। गरीब भारत ने आर्थिक और मानव संसाधनों का भारी योगदान दिया, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अपने वादे से मुकरते हुए 21 मार्च 1919 को कठोर रॉलेट एक्ट लागू कर दिया। इस दमनकारी कानून के तहत वारंट के बिना गिरफ्तारी और घर की तलाशी, बंद कमरे में मुकदमा, आरोपी को वकील की सुविधा न देना और विशेष न्यायाधिकरणों के फैसलों के खिलाफ अपील का कोई अधिकार न होना शामिल था। इस कानून के विरोध में नारा गूंजा – "नो वकील, नो दलील, नो अपील।" भारतीयों के एकमत विरोध के बावजूद यह कानून विधान परिषद में जबरन पारित कर दिया गया। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा विश्वासघात का प्रतीक था।
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