सतनामी समूह की स्थापना 1820 में मध्य भारत के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में गुरु घासीदास ने की थी। वह एक खेतिहर मजदूर और दलित जाति के सदस्य थे, जिनका पारंपरिक पेशा चमड़े का काम था, जिसे हिंदू समाज में अपवित्र माना जाता था। उनके सतनाम पंथ ने 19वीं सदी में धार्मिक और सामाजिक पहचान स्थापित करने में सफलता पाई।
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