केरल के पारंपरिक जनजातीय हस्तशिल्प 'कन्नडिप्पाया' को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला है, जो इसकी अनूठी पहचान और उत्पत्ति की रक्षा करता है। 'कन्नडिप्पाया' का अर्थ है 'दर्पण चटाई' क्योंकि इसका चमकदार और प्रतिबिंबित डिज़ाइन है। इसे नरकट बांस की मुलायम आंतरिक परतों से बनाया जाता है, जिससे यह सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रहता है। यह शिल्प मुख्य रूप से इडुक्की, त्रिशूर, एर्नाकुलम और पलक्कड़ जिलों में ऊराली, मन्नान, मुथुवा, मलायन, कादर, उल्लादन, मलायरायन और हिल पुलाया जैसी जनजातीय समुदायों द्वारा किया जाता है।
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