यह पश्चिमी ओडिशा का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में ज्योतिषियों द्वारा तय किए गए शुभ दिन पर मनाया जाता है। यह त्योहार नए धान के उपभोग के लिए होता है, लेकिन इसे एक सामूहिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर नए चावल को दूध और चीनी (क्षीरी) के साथ पकाकर देवी लक्ष्मी को भोग अर्पित किया जाता है।
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