बलबन ने अपने शासन को वैध ठहराने के लिए निजी और सार्वजनिक जीवन में फारसी परंपराएं अपनाईं। उन्होंने फारसी शिष्टाचार, नवरोज़ उत्सव की शुरुआत की, खुद को 'ज़िल्ल-ए-इलाही' यानी ईश्वर की छाया बताया और 'उलूग़ ख़ान' की उपाधि अपनाई। उनके दरबार में सिजदा और पैबोस जैसी कठोर प्रोटोकॉल का पालन होता था ताकि शाही अधिकार को मजबूत किया जा सके।
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