साल 2005 में गठित तेंदुलकर समिति ने भारत में गरीबी मापने के लिए "जीवन यापन की लागत" दृष्टिकोण अपनाया था। इस पद्धति में गरीबों की उपभोग प्रवृत्तियों को ध्यान में रखा गया और क्षेत्रीय मूल्य भिन्नताओं के आधार पर गरीबी रेखा को समायोजित किया गया। समिति का उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को गरीबी मापन ढांचे में शामिल कर गरीबी का अधिक सटीक आकलन करना था। इस दृष्टिकोण से संशोधित गरीबी रेखा बनी, जिसने भारत में बदलती आर्थिक परिस्थितियों और जीवन स्तर को मान्यता दी।
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