"स्वदेशी समाज" वास्तव में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का एक निबंध या व्याख्यान था, जो बंगाल के विभाजन के सरकार के फैसले से उनकी निराशा का परिणाम था। इस व्याख्यान में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि प्रस्तावित विभाजन के बजाय ग्रामीण बंगाल का आत्मनिर्भरता आधारित पुनर्गठन किया जाना चाहिए। यह विचार ब्रिटिश सरकार को स्वीकार्य नहीं था, लेकिन 1905 में ब्योमकेश मुस्ताफी के साथ मिलकर इस कार्यक्रम का विस्तृत खाका तैयार करने का प्रयास किया गया। इसमें स्वदेशी कला और शिल्प, व्यायामशालाओं, औषधालयों आदि को बढ़ावा देने के साथ-साथ बंगाली माध्यम स्कूलों की स्थापना की योजना भी शामिल थी।
This Question is Also Available in:
English