नाथपंथी, सिद्धाचार और योगी मानते थे कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ध्यान के माध्यम से संभव है। वे संसार का त्याग और योगासन, श्वास नियंत्रण तथा ध्यान जैसी विधियों के माध्यम से मन और शरीर के गहन प्रशिक्षण पर जोर देते थे। उनका विश्वास था कि निराकार परमसत्ता पर ध्यान लगाना और उसके साथ एकत्व की अनुभूति ही मोक्ष का मार्ग है।
नाथपंथी, सिद्धाचार और योगी पारंपरिक धर्म की अनुष्ठानिक प्रथाओं की आलोचना करते थे। उनका मानना था कि बाहरी अनुष्ठान और जटिल विधियाँ अपने मूल उद्देश्य, जो आध्यात्मिक उन्नति और आत्मबोध था, से भटक गई हैं। उनकी इस आलोचना ने भक्ति धर्म के प्रसार के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया जिससे यह उत्तर भारत में एक प्रभावशाली प्रवृत्ति बना।
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