मोहम्मद तुगलक ने सोने के सिक्के (दीनार) और चांदी के सिक्के (अदल या अदलीस) जारी किए थे। हालांकि, बड़े पैमाने पर सोने और चांदी के सिक्कों की आपूर्ति बनाए रखना मुश्किल था। इसलिए तुगलक ने इन सिक्कों को बदलकर तांबे और पीतल के सिक्कों को टोकन मुद्रा के रूप में प्रचलन में लाया जिनकी मूल्य सोने या चांदी के सिक्कों के बराबर थी 1330-32 ईस्वी में। लेकिन सिक्कों पर सुरक्षा, केंद्रीय टकसाल और सिक्कों की जालसाजी के अभाव के कारण उनका प्रयास असफल रहा। नए जारी किए गए सिक्के बाजारों में अवमूल्यित होने लगे और स्थिति खराब हो गई। अंततः सुल्तान को अपना फरमान रद्द करना पड़ा और टोकन मुद्रा को बाजार से हटाकर उसे चांदी के टुकड़ों से बदलना पड़ा।
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