अपने शासन के अंतिम वर्षों में अकबर ने मनसबदारी प्रणाली में 'जात' और 'सवार' की पदवी शुरू की। प्रत्येक मनसबदार को अपनी 'जात' के अनुसार सैनिक रखने होते थे, जबकि 'सवार' की पदवी घुड़सवारों की संख्या दर्शाती थी। अतिरिक्त भत्तों को निर्धारित करने के लिए मनसबदारों को 'सवार' की पदवी दी जाती थी।
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