1940 के अगस्त प्रस्ताव के बाद सुभाष चंद्र बोस ने वायसराय लिनलिथगो के बिना परामर्श के भारत को युद्ध में शामिल करने के फैसले के खिलाफ बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया। गांधी और कांग्रेस को मनाने में असफल रहने पर उन्होंने कलकत्ता में बड़े विरोध प्रदर्शन किए और जुलाई 1940 में गिरफ्तार कर लिए गए। सात दिन की भूख हड़ताल के बाद रिहा होने पर उनके घर को सीआईडी निगरानी में रखा गया। हालांकि, 19 जनवरी 1941 को उन्होंने अपने भतीजे शिशिर बोस के साथ एक साहसिक योजना के तहत भागने में सफलता पाई। गुप्त रूप से अफगानिस्तान, रूस और इटली होते हुए वे जर्मनी पहुंचे। एक साल बाद मार्च 1942 में भारतीयों ने पहली बार बोस को रेडियो बर्लिन पर सुना। उसी समय जर्मनी में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद रेडियो सेवा शुरू की गई ताकि भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया जा सके। शुरुआत में यह जर्मनी में था लेकिन युद्ध के दौरान इसका मुख्यालय सिंगापुर और फिर रंगून स्थानांतरित कर दिया गया। नेताजी के दक्षिण-पूर्व एशिया जाने के बाद जर्मनी में इसका संचालन ए.सी.एन. नांबियार ने जारी रखा, जो वहां भारतीय सेना के प्रमुख और बाद में जर्मनी में आजाद हिंद सरकार के राजदूत बने।
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