पश्चिम बंगाल में चंचला काली माता पूजा के दौरान कलाकार 'गोमिरा' नृत्य प्रस्तुत करते हैं। यह 300 साल पुरानी परंपरा होली (दोल) के बाद मनाई जाती है। यह नृत्य उत्तर बंगाल के राजबंशी और पोलिया समुदायों की पारंपरिक लोक कला है। इस पर महायान बौद्ध, तांत्रिक बौद्ध, शैव और शक्त परंपराओं का प्रभाव है। यह नृत्य इन आध्यात्मिक प्रभावों के मेल से विकसित हुआ है। इसमें इस्तेमाल होने वाले मुखौटे पेपर-माचे, शोलापीठ, बांस, लकड़ी, स्पंज वुड, मिट्टी और कागज से बनाए जाते हैं। यह नृत्य ढाक और कांसार जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ताल पर प्रस्तुत किया जाता है।
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