यह वेद ब्रह्मवेद के नाम से भी जाना जाता है और इसे ऋषि अथर्वण और अंगिरस से जोड़ा जाता है। इन दोनों ऋषियों के कारण इसे प्राचीन काल में अथर्वांगिरस भी कहा जाता था। यह मुख्य रूप से समाज की शांति और कल्याण से जुड़ा है। यह मनुष्य के दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को समेटता है और कई रोगों की रोकथाम से भी संबंधित है। इस ग्रंथ में लगभग 99 रोगों के उपचारों का उल्लेख मिलता है। इसमें दो प्रमुख शाखाएँ हैं – पिप्पलाद और शौनक। इसका बड़ा हिस्सा उपचार, काले और सफेद जादू, ब्रह्मांड में होने वाले परिवर्तनों पर विचार और गृहस्थ जीवन की सामान्य समस्याओं से संबंधित है।
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