13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पावन दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में करीब 10 से 15 हजार निहत्थे लोग इकट्ठा हुए थे। वे त्योहार मना रहे थे और साथ ही रॉलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले अपने दो नेताओं डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का शांतिपूर्ण विरोध भी कर रहे थे। जलियांवाला बाग तीन तरफ से ऊंची दीवारों और इमारतों से घिरा एक बड़ा खुला मैदान था, जिसमें जाने का केवल एक संकरा रास्ता था। अमृतसर के सैन्य कमांडर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने सैनिकों और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ बाग को घेर लिया। सूर्यास्त से ठीक पहले उन्होंने निकास मार्ग बंद कर दिया और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर मशीनगनों और राइफलों से गोली चलाने का आदेश दे दिया। फंसे हुए लोगों के पास न भागने का रास्ता था, न छिपने की जगह। इस नरसंहार में 1200 लोग मारे गए और 3600 घायल हुए।
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