इस निर्णय ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें संसद को संविधान के सभी भागों, विशेष रूप से मौलिक अधिकारों से संबंधित भाग 3 में संशोधन करने की शक्ति दी गई थी। इस निर्णय के बाद संसद के पास मौलिक अधिकारों को सीमित करने की कोई शक्ति नहीं बची।
संसद ने 1971 में 24वां संशोधन पारित कर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को निष्प्रभावी कर दिया। इस संशोधन के जरिए संविधान में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान जोड़ा गया कि संसद को संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है, जिसमें मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं। इसके तहत अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन कर यह सुनिश्चित किया गया कि अनुच्छेद 368 के तहत किए गए संशोधन अनुच्छेद 13 के उस प्रतिबंध के दायरे से बाहर हों, जो किसी भी कानून द्वारा मौलिक अधिकारों को सीमित या समाप्त करने पर रोक लगाता है।
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