तराबाई शिवाजी के पुत्र राजाराम की विधवा थीं। शाहू और शिवाजी तृतीय के बीच हुए गृहयुद्ध में कान्होजी आंग्रे ने उनका समर्थन किया। तराबाई ने ही कान्होजी को "सरखेल" की उपाधि दी। बाद में 1714 में हुए लोनावला संधि के तहत कान्होजी ने शाहू से समझौता कर उनका समर्थन करना शुरू कर दिया।
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