बलबन को 1232 ई. में दिल्ली लाया गया, जहाँ 1233 ई. में ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश ने उसे खरीद लिया। उसकी क्षमताओं से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने उसे ख़ासदार की उपाधि दी। रज़िया के शासनकाल में उसे अमीर-ए-शिकार का पद मिला। रज़िया के खिलाफ षड्यंत्र में वह तुर्की सरदारों के साथ था, जिसके परिणामस्वरूप बहरामशाह सुल्तान बना और बलबन को अमीर-ए-अख़ुर की उपाधि मिली।
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