'यजुस' का अर्थ 'यज्ञ' है और यह वैदिक अनुष्ठानों तथा प्राचीन काल में प्रचलित यज्ञ मंत्रों पर आधारित है। यजुर्वेद के दो मुख्य भाग हैं - शुक्ल (श्वेत/शुद्ध) और कृष्ण (काला/गहरा)। इन्हें वाजसनेयी संहिता और तैत्तिरीय संहिता के नाम से भी जाना जाता है। यजुर्वेद ऋषियों और पुरोहितों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह कार्य करता है और मुख्य रूप से यज्ञ करने वालों के लिए एक कर्मकांड प्रधान वेद है।
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