आचार्य हरिभद्र सूरी श्वेतांबर संप्रदाय के जैन मुनि, दार्शनिक, मतविश्लेषक और लेखक थे। उनके जन्म को लेकर विभिन्न मतभेद हैं। परंपरागत रूप से इसे 459-529 ईस्वी के आसपास माना जाता है। हालांकि 1919 में जैन मुनि जिनविजय ने सुझाव दिया कि उनकी धर्मकीर्ति से पहचान 650 ईस्वी के बाद संभव हो सकती है। हरिभद्र ने अपनी रचनाओं में विद्याधर वंश के जिनभद्र और जिनदत्त का उल्लेख अपने गुरु के रूप में किया है। उनके जीवन को लेकर कई विरोधाभासी विवरण मिलते हैं। उन्होंने योग पर कई ग्रंथ लिखे, जिनमें योगदृष्टिसमुच्चय प्रमुख है।
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