नीलगिरी, बबूल, पॉपलर आदि सामाजिक वानिकी में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली वृक्ष प्रजातियाँ हैं। इसका कारण यह है कि नीलगिरी घटते प्राकृतिक वनों से बढ़ती लकड़ी की मांग को पूरा करने में मदद करता है और स्थानीय समुदायों व उद्योगों को आपूर्ति करता है। नीलगिरी 1970 के दशक में भारत के सामाजिक वानिकी कार्यक्रम का हिस्सा बना। विश्व बैंक की वित्तीय सहायता से कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे भारतीय राज्यों में बड़े पैमाने पर वन भूमि, खेत और बंजर भूमि पर नीलगिरी के पेड़ लगाए गए।
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