1909 का भारतीय परिषद अधिनियम, जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधारों के नाम से जाना जाता है, ने मुसलमानों को पृथक निर्वाचक मंडल का अधिकार दिया। इन सुधारों से पहले मुसलमानों को चिंता थी कि ब्रिटिश प्रणाली का 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' चुनावी तरीका उन्हें हिंदू बहुमत के अधीन कर देगा। 1909 के अधिनियम में मुस्लिम नेतृत्व की मांग के अनुसार भारतीय मुसलमानों के लिए नगरपालिका और जिला बोर्ड, प्रांतीय परिषदों और केंद्रीय विधायिका में आरक्षित सीटें तय की गईं। आरक्षित सीटों की संख्या उनकी जनसंख्या (25 प्रतिशत) से अधिक रखी गई और केवल मुसलमानों को ही इन सीटों पर मतदान करने का अधिकार दिया गया।
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