कुचिपुड़ी भारत के दक्षिण-पूर्वी राज्य आंध्र प्रदेश का एक शास्त्रीय नृत्य रूप है। इसकी उत्पत्ति आधुनिक आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के एक गाँव में हुई थी और इसका नाम भी उसी गाँव से लिया गया है। यह एक नृत्य-नाटक कला है, जिसकी जड़ें प्राचीन हिंदू संस्कृत ग्रंथ "नाट्य शास्त्र" में हैं। भारत के अन्य प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों की तरह यह भी धार्मिक कला के रूप में विकसित हुआ, जो घूमंतू भिक्षुओं, मंदिरों और आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ा था। कुचिपुड़ी शैली का निर्माण 17वीं शताब्दी के प्रतिभाशाली वैष्णव कवि सिद्धेंद्र योगी ने किया था। यह भगवान गणेश की वंदना से शुरू होता है, इसके बाद नृत्त (गैर-आख्यानात्मक और अमूर्त नृत्य), शब्दम (आख्यानात्मक नृत्य) और नाट्य का प्रदर्शन किया जाता है। इस नृत्य को आमतौर पर कर्नाटकी संगीत के गीतों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। गायक के साथ मृदंगम, वायलिन, बांसुरी और तंबूरा जैसे वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। अन्य शास्त्रीय नृत्यों की तरह इसमें भी शुद्ध नृत्य, अभिनय और हाव-भाव होते हैं, लेकिन संवादों के प्रयोग के कारण यह नृत्य-नाटक के रूप में अलग पहचान रखता है।
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