लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दलविहीन लोकतंत्र और लोक-उम्मीदवार की अवधारणा का समर्थन किया। 1957 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से औपचारिक रूप से नाता तोड़कर लोकनीति को अपनाया, जो राज्यनीति के विपरीत थी। इस समय तक वे मान चुके थे कि लोकनीति को गैर-पक्षपाती होना चाहिए ताकि सर्वसम्मति आधारित, वर्गहीन और भागीदारी लोकतंत्र स्थापित किया जा सके, जिसे उन्होंने सर्वोदय कहा।
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