1907 में सूरत अधिवेशन के दौरान हिंसक विवाद के बाद कांग्रेस 'उदारवादी' और 'उग्रवादी' गुटों में बंट गई। उग्रवादियों का नेतृत्व लोकमान्य तिलक, लाजपत राय और श्री अरविंदो ने किया, जबकि उदारवादियों का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने किया। विभाजित कांग्रेस 1916 के लखनऊ अधिवेशन में फिर से एकजुट हुई।
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