बलबन ने खुद को सुल्तान के रूप में ईश्वर की छाया (ज़िल-ए-इलाही) और दैवीय कृपा का प्राप्तकर्ता माना। उसने अपने दरबार में कठोर अनुशासन लागू किया और नए रीति-रिवाज शुरू किए, जिनमें सिजदा, जिसे साष्टांग प्रणाम कहा जाता है, और पाइबोस, जिसमें सुल्तान के चरण चूमे जाते थे, शामिल थे।
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