तेइसवें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का वाराणसी से गहरा संबंध था। उनका जन्म वहीं शासक राजा और रानी के यहां हुआ था। संन्यासी बनने के बाद उन्होंने व्यापक यात्राएं कीं लेकिन ध्यान और तप के लिए अंततः वाराणसी लौट आए। उन्होंने वाराणसी के पास सम्मेत शिखर पर एक वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया। आज भी उस स्थान पर प्रसिद्ध पार्श्वनाथ मंदिर है जो दुनियाभर के जैनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
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