Q. नारायणी माता का मेला कब लगता है?
Answer:
बैशाख शुक्ल एकादशी
Notes: नारायणी माता का मेला प्रतिवर्ष बैशाख शुक्ल एकादशी को अलवर में लगता है| नारायणी माता का मंदिर चारो ओर से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों व जंगलों से घिरा हुआ है| यहां पर प्राकृतिक जल की धारा फूट रही है, जो लगभग दो कि.मी. की दूरी पर जाकर खत्म हो जाती है। फर्श की दरारों से पानी स्वतः ही भूमि से निकल रहा है, जो कुण्ड में मात्र एक फीट के लगभग भरा रहता है। कुण्ड में एक चमत्कार नजर आता है। इसके अन्दर सिक्कों के होने का आभास होता है, परन्तु उनको पानी से बाहर निकालते ही वे पत्थर में परिवर्तित हो जाते हैं। गर्मियों में ठंडा व सर्दियों में गर्म जल आता है। यहां प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सुदी 14 को रात्रि जागरण एवं पूर्णिमा को मेला लगता है एवं भण्डारा होता है। साथ ही लोक कलाकारों द्वारा अपनी कला का प्रदर्शन किया जाता है| मान्यता है कि सेन समाज की कुलदेवी माता नारायणी का विवाह हुआ व प्रथम बार उनके पति के साथ वे अपने ससुराल जा रही थीं। चूंकि उस समय आवागमन के साधन नहीं थे, इसलिए दोनों पैदल ही जा रहे थे। गर्मियों के दिन थे, इसीलिए उन्होंने जंगल में एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने का विचार किया। जब वे विश्राम कर रहे थे, तभी अचानक एक सांप ने आकर उनके पति को ढंस लिया और वे वहीं मर गये। कहा जाता है कि जंगल सूना था और दोपहर का समय था। नारायणी माता बिलख-बिलख कर रोने लगीं। शाम के समय कुछ ग्वाल अपनी गायों को लेकर वहां से