वार्षिक तीर्थयात्रा की परंपरा
17वीं और 18वीं शताब्दी में 'पुटिंग आउट सिस्टम' का विस्तार हुआ, जिसे 'दादनी प्रणाली' भी कहा जाता था। इसमें व्यापारी या उद्यमी गांवों से कपास, नील, रेशम जैसे कच्चे माल खरीदते और कारीगरों को आपूर्ति करते थे। कारीगरों को तय कीमत पर तैयार माल लौटाना होता था। इस व्यवस्था में गुमाश्ताओं (एजेंटों) की महत्वपूर्ण भूमिका थी। व्यापारियों और कारीगरों के बीच अनुबंध होते थे, जिनमें कीमत, मात्रा और समय से जुड़ी शर्तें तय की जाती थीं। इस प्रणाली से उत्पादन बढ़ा लेकिन कारीगर भारतीय और विदेशी व्यापारियों पर अधिक निर्भर हो गए। वास्तव में, यह यूरोपीय कंपनियों के लिए एक लोकप्रिय उत्पादन प्रणाली थी, जो भारत से तैयार माल का निर्यात करती थीं।
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