रानी दुर्गावती अपने पुत्र बीर नरायण के लिए गढ़ा कटंगा पर शासन कर रही थीं। 1564 में उन्होंने आसफ खान के नेतृत्व में आई मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया और आत्मसमर्पण के बजाय वीरगति को चुना। बीर नरायण ने संघर्ष जारी रखा लेकिन वे पकड़े गए और मार दिए गए। दुर्गावती धनुर्विद्या और गुरिल्ला युद्ध में निपुण थीं और उनकी वीरता आज भी लोककथाओं में जीवित है।
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