संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अनुसार, राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को अनुचित आचरण या अक्षमता साबित होने पर हटा सकते हैं, जब संसद के दोनों सदनों के कुल सदस्यता के बहुमत से महाभियोग के पक्ष में मतदान किया जाए और प्रत्येक सदन में उपस्थित सदस्यों का कम से कम दो तिहाई इसका समर्थन करे। किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राज्यसभा के कम से कम 50 या लोकसभा के 100 सदस्य न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत नोटिस जारी करते हैं। इसके बाद एक न्यायिक समिति गठित की जाती है, जो न्यायाधीश पर आरोप तय करती है, निष्पक्ष सुनवाई करती है और संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपती है। यदि न्यायिक समिति की रिपोर्ट में न्यायाधीश को अनुचित आचरण या अक्षमता का दोषी पाया जाता है और वह स्वयं इस्तीफा नहीं देता, तो संसद आगे की हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है। अब तक किसी भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को महाभियोग प्रक्रिया के जरिए नहीं हटाया गया है।
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