पंडिता रमाबाई, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष करने वाली समाज सुधारक थीं। संस्कृत सहित कई भाषाओं में उनकी दक्षता के कारण उन्हें "पंडिता" की उपाधि मिली। 1882 में उन्होंने पुणे में महिलाओं की शिक्षा के लिए आर्य महिला समाज की स्थापना की और 1899 में शारदा सदन की नींव रखी।
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