100 वर्षों बाद पुनः खोजा गया दुर्लभ हेक्सापॉड: ‘Ballistura fitchoides’ की अनोखी वैज्ञानिक उपलब्धि

लगभग एक सदी पहले नीलगिरि की पहाड़ियों से वर्णित एक दुर्लभ हेक्सापॉड कीट प्रजाति ‘Ballistura fitchoides’ को हाल ही में पुनः खोजा गया है। यह खोज न केवल जैवविविधता अनुसंधान के लिए एक मील का पत्थर है, बल्कि भारत के एक छोटे और सीमित संसाधनों वाले प्रयोगशाला की एक उल्लेखनीय सफलता भी है। इस कीट के पूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का विश्लेषण कर लेना वैश्विक कीट विज्ञान में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पुनः खोज
फ्रांसीसी वैज्ञानिक जे. आर. डेनिस ने 1933 में नीलगिरि जिले के देवर्षोला के पास एक दुर्लभ वसंत कीट (springtail – Collembolla) की पहचान की थी और इसे ‘Ballistura fitchi’ नाम दिया था। 1944 में उन्होंने इसे पुनः वर्गीकृत कर ‘Ballistura fitchoides’ नाम दिया और इसका नमूना पेरिस के ‘Musée National des Sciences Naturelles’ में जमा किया। दुर्भाग्यवश, समय के साथ यह मूल ‘होलोटाइप’ नमूना खो गया और इस प्रजाति का कोई प्रमाणित जीवित या संरक्षित उदाहरण नहीं बचा।
2025 में, उधगमंडलम स्थित गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के मॉलिक्यूलर बायोडायवर्सिटी लैब की टीम — जिसमें प्रोफेसर आर. सनिल, अनुसंधान छात्रा अंजूरिया जोस और नार्मदा एस. शामिल थे — ने वायनाड, केरल के कोलवायल नामक स्थान से इस प्रजाति का एक नया नमूना खोजा। यह स्थान देवर्षोला से मात्र 35 किलोमीटर दूर है और कीट को सड़ी हुई केले की खाद में संयोगवश पाया गया। अब यह नमूना “नीओटाइप” के रूप में दर्ज किया गया है।
डीएनए विश्लेषण की चुनौती और सफलता
Ballistura वंश की दुनिया भर में 21 ज्ञात प्रजातियाँ हैं, लेकिन अब तक इसके डीएनए से संबंधित कोई भी आनुवंशिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी। इतने छोटे कीट (हेक्सापॉड) से माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए निकालना और उसका विश्लेषण करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। यह कार्य नीलगिरि की एक सीमित संसाधनों वाली प्रयोगशाला में संभव हो सका, जो कि भारतीय अनुसंधान की एक गौरवशाली उपलब्धि है।
सामाजिक प्रतिनिधित्व और महिला नेतृत्व
इस अनुसंधान की मुख्य लेखिका, अंजूरिया जोस, वायनाड की एक आदिवासी समुदाय से हैं और उन्हें हाल ही में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग, चेन्नई में प्रोजेक्ट साइंटिस्ट के रूप में नियुक्त किया गया है। यह न केवल वैज्ञानिक प्रतिभा का प्रतीक है, बल्कि समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आने वाली प्रतिभाओं के लिए एक प्रेरणादायक कहानी भी है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ‘Ballistura fitchoides’ एक दुर्लभ वसंत कीट प्रजाति है जो पहली बार 1933 में नीलगिरि से वर्णित हुई थी।
- मूल ‘होलोटाइप’ नमूना खो जाने के बाद, वायनाड (केरल) से एक नया ‘नीओटाइप’ नमूना प्राप्त हुआ।
- भारत में अब तक केवल दो Ballistura प्रजातियाँ रिपोर्ट की गई हैं: एक बंगाल से और दूसरी नीलगिरि क्षेत्र से।
- यह पहली बार है कि इस वंश के किसी कीट का पूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए विश्लेषण किया गया है।
यह खोज यह दर्शाती है कि वैज्ञानिक अनुसंधान में निरंतरता, जिज्ञासा और प्रतिबद्धता से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। ‘Ballistura fitchoides’ की पुनः खोज और उसका आनुवंशिक विश्लेषण भविष्य में कीट वर्गीकरण और जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।