केरल में ‘विथूट’ योजना: बीज वर्षा के ज़रिए वनों का पुनरुद्धार या पारिस्थितिकी पर संकट?

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर केरल वन विभाग ने ‘विथूट’ नामक एक अभिनव वनरोपण योजना का शुभारंभ किया, जिसका उद्देश्य है राज्य के जंगलों और खाली पड़ी भूमि में बीजों की हवाई वर्षा कर पारिस्थितिक तंत्र का पुनरुद्धार करना। यह पहल मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं और पर्यावरणीय क्षरण की पृष्ठभूमि में शुरू की गई है। यद्यपि यह प्रयास देश में अब तक की सबसे बड़ी बीज वर्षा परियोजना है, लेकिन इसके संभावित जोखिमों पर भी विशेषज्ञों की ओर से चिंताएं उठाई गई हैं।

‘विथूट’: बीज वर्षा का सामुदायिक प्रयास

‘विथूट’, जिसका अर्थ है ‘बीज वर्षा’, एक सामुदायिक वनरोपण प्रयास है जिसे केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की सहायता से संचालित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में छात्रों सहित विभिन्न सामाजिक वर्गों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है। बीज एकत्र करने, तैयार करने और प्रसार की जिम्मेदारी भी समुदाय को दी गई है।
इस योजना के तहत, ड्रोन और हेलिकॉप्टर के माध्यम से बीजों का प्रसार किया जाएगा। आने वाले अभियानों में वायु सेना सहित कई एजेंसियों से सहयोग की योजना है। बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रमाणित विक्रेताओं से प्राप्त किया जाएगा और कठोर परीक्षण के बाद ही उपयोग में लाया जाएगा।

पारिस्थितिकीय पुनर्निर्माण के लक्ष्य

विथूट योजना के तहत उन क्षेत्रों को लक्षित किया जाएगा जो भूस्खलन, जंगल की आग, परित्यक्त बागान, जलाशयों के कैचमेंट क्षेत्र, और कृषि समाप्ति के बाद खाली हुई जनजातीय भूमि से प्रभावित हैं। योजना में फलदार वृक्षों, बांस जैसी घासों, और तेजी से बढ़ने वाली स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी गई है। भविष्य में दुर्लभ, संकटग्रस्त और स्थानिक प्रजातियों के बीज भी सम्मिलित किए जाएंगे।
इस योजना का उद्देश्य स्थानीय जलवायु में सुधार, वन्यजीवों और मनुष्यों के लिए खाद्य स्रोत उपलब्ध कराना, और वन उत्पादों की पहुंच बढ़ाना है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ‘विथूट’ भारत की अब तक की सबसे व्यापक बीज वर्षा परियोजना है।
  • बीज बॉल्स में मिट्टी, जैविक खाद और बीज का मिश्रण होता है, जो बीजों को जलवायु से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • केरल वन विभाग इस अभियान में ड्रोन, हेलिकॉप्टर और वायु सेना का सहयोग ले रहा है।
  • परियोजना का उद्देश्य मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करना और जल सुरक्षा को बढ़ाना है।

विशेषज्ञों की चेतावनी और आशंकाएं

यद्यपि बीज बॉल्स को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त पुनर्वनीकरण विधि माना जाता है, विशेषज्ञों का मानना है कि इसके व्यापक उपयोग में सावधानी आवश्यक है। के. एच. अमिथा बचन और पी. ओ. नामीर जैसे पारिस्थितिकीविदों ने चेताया कि यदि बीज बॉल्स सही समय पर नहीं गिराए गए या प्रतिकूल परिस्थितियों में नष्ट हो गए, तो बीज असमय अंकुरित हो सकते हैं जिससे उनके जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है।
इसके अलावा, यदि इन बीजों में गैर-स्थानीय या आक्रामक प्रजातियाँ शामिल हो गईं, तो ये स्थानीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उदाहरण के लिए, सेनना, लैंटाना और यूपेटोरियम जैसी आक्रामक प्रजातियों से केरल पहले ही समस्याओं का सामना कर रहा है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बीजों का चयन एक संदर्भ पारिस्थितिकी मॉडल पर आधारित होना चाहिए और इसकी निगरानी अनिवार्य है। सभी जैव-जलवायु क्षेत्रों की वनस्पति संरचना भिन्न होती है, जिसे ध्यान में रखे बिना कोई भी सार्वभौमिक योजना नुकसानदायक हो सकती है।
विथूट एक महत्वाकांक्षी और सामुदायिक प्रयास है जो यदि उचित निगरानी, वैज्ञानिक आधार और स्थानीय पारिस्थितिकी की समझ के साथ लागू किया जाए, तो यह पर्यावरणीय पुनर्निर्माण का एक मॉडल बन सकता है। लेकिन यदि इसे बिना पर्याप्त योजना और पारिस्थितिकीय समझ के लागू किया गया, तो यह अच्छे इरादों के बावजूद दीर्घकालिक संकट का कारण बन सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *