UDID कार्ड कवरेज में गंभीर खामियाँ: दिव्यांगजनों के अधिकारों तक सीमित पहुंच

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) को उनके कानूनी अधिकार और सरकारी योजनाओं के लाभ दिलाने के लिए यूनिक डिसएबिलिटी आईडी (UDID) कार्ड एक प्रमुख उपकरण है। परंतु हालिया आंकड़े दर्शाते हैं कि देश की अनुमानित दिव्यांग आबादी में से 40% से भी कम को अब तक यह कार्ड प्राप्त हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नीति और ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन के बीच एक बड़ा अंतर बना हुआ है।
UDID कार्ड का महत्व और अधूरी पहुंच
UDID उप-योजना, केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) द्वारा संचालित है। इसका उद्देश्य एक राष्ट्रीय दिव्यांग डेटाबेस तैयार करना है, ताकि विभिन्न योजनाओं का लाभ सीधे और प्रमाणित रूप से संबंधित व्यक्तियों तक पहुंच सके। यह कार्ड धारकों को अनेक सरकारी लाभों तक पहुंच देता है, जैसे:
- एडीआईपी योजना के तहत सहायक उपकरण (व्हीलचेयर, बैसाखी, श्रवण यंत्र आदि)
- शिक्षा में छात्रवृत्तियाँ
- सरकारी नौकरियों में आरक्षण
लेकिन जब यह कार्ड ही समय पर नहीं मिलता, तो योजनाओं का लाभ मिलना भी असंभव हो जाता है।
लंबित आवेदन और प्रक्रिया में बाधाएँ
वर्तमान में 11 लाख से अधिक आवेदन लंबित हैं, जिनमें से 60% से अधिक छह महीने से भी ज्यादा समय से अटके हैं। हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और मिज़ोरम जैसे राज्यों में यह प्रतिशत 80% से भी अधिक है। इससे स्पष्ट है कि सिस्टम में संरचनात्मक अड़चनें हैं।
इसका एक बड़ा कारण है कि आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन है। डिजिटल साक्षरता की कमी, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और महिला आवेदकों में, इस प्रक्रिया को और अधिक जटिल बना देती है। अधिकांश आवेदकों को दस्तावेज़ स्कैन कर अपलोड करने जैसी प्रक्रिया कठिन लगती है।
राज्यवार कवरेज और असमानता
भारत के 23 राज्यों में आधे से भी कम दिव्यांगजन UDID कार्ड प्राप्त कर पाए हैं। केवल तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक और मेघालय में यह आंकड़ा 50% से ऊपर गया है। वहीं पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में केवल 6% लोगों को ही यह कार्ड मिला है। यह क्षेत्रीय असमानता योजनाओं की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ● UDID योजना का उद्देश्य देशभर में दिव्यांगजनों की एकीकृत पहचान और सुविधा-सुलभता सुनिश्चित करना है।
- ● एडीआईपी योजना, वर्ष 1981 में शुरू हुई, सहायक उपकरण उपलब्ध कराने के लिए जानी जाती है।
- ● भारत की अनुमानित दिव्यांगजन आबादी 2.68 करोड़ है (जनगणना 2011)।
- ● भारत में डिजिटल साक्षरता दर 60% से कम है, जो महिला और दिव्यांग आवेदकों के लिए और भी कम हो सकती है।
राजनीतिक उपेक्षा का कारण
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, दिव्यांगजन एक छोटा और बिखरा हुआ वोट बैंक हैं, जिसकी संख्या चुनावों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जाती। यही कारण है कि उनकी समस्याएं नीति निर्माताओं की प्राथमिकता में नहीं आतीं। साथ ही, UDID योजना के बजट में कमी भी यह दर्शाती है कि इसके महत्व को प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया गया है।
UDID कार्ड की कवरेज में यह भारी कमी केवल प्रशासनिक लापरवाही का संकेत नहीं है, बल्कि यह दिव्यांगजनों के प्रति समाज और सरकार की सामूहिक संवेदनहीनता को भी उजागर करता है। यदि ‘सबका साथ, सबका विकास’ को वास्तव में साकार करना है, तो UDID जैसी आधारभूत योजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी — न केवल कागज़ पर, बल्कि क्रियान्वयन में भी।